दूधसागर झरना, सोनौलिम, गोवा मंडोवी नदी पर पश्चिमी घाट्स में एक 320 मीटर ऊंचा झरना है। इसकी इतनी ऊंचाई, अचंभित दृश्य और इसके पास से गुजरने वाली रेलगाड़ी की पटरी इसे और भी रोमांचक बना देती हैं। बॉलीवुड की चेन्नई एक्सप्रेस फ़िल्म में एक रेलगाड़ी के रुकने के दृश्य से ये झरना और भी प्रसिद्ध हो गया।
मानसून के मौसम में गोवा जाना सैलानियों के द्वारा हमेशा शक भरा रहा है| कुछ प्रसिद्ध समुद्र तट के अलावा बाकी सारी जगह बंद रहती हैं या फिर दिन भर वर्षा होती रहती है। इस मौसम में सूरज भी काम ही निकलता है। हर मौसम की अपने ही श्रेष्ठता होती है| मानसून अपने साथ गोवा में एक अलग ही रम्य गतिविधियों की कतार लगा देता है।
इस मौसम में दूधसागर झरने तक की ट्रैकिंग का अपना ही अलग मज़ा है। बल्कि इस मौसम में दूधसागर जाने का बस यही तरीका है। भारी बारिश के कारण मिट्टी की सड़क पानी से भर जाती है जिसकी वजह से गाड़ियां झरने तक नहीं जा पाती। कोलेम से झरने तक 10 किलोमीटर की ट्रैकिंग करके जाना पड़ता है जो आना जाना पूरा 20 किलोमीटर का बना देता है। अगर आपके भाग्य ने आपका साथ दिया तो वापस आते वक़्त झरने के पास वाले सोनौलिम स्टेशन से रेलगाड़ी पकड़ के वापस कोलेम आ सकते हैं।
हमारी ट्रैकिंग की कहानी
में और मेरे दो दोस्त गोवा से सुबह 10 बजे दूधसागर झरने के लिए निकले। तब मौसम बहुत अच्छा था पर कोलेम पहुंचते पहुंचते मौसम और सुहाना हो गया और वर्षा शुरू हो गयी। हम लोग एक कार से सफर करते हुए 12 बजे कोलेम पहुंचे और झरने तक पहुंचने के लिए एक गाइड को साथ लिया। हमे लाइफ जैकेट दी गयी अगर हम नदी से तैरते हुए वापस आना चाहे तो :) मजाक कर रहा था... पानी का बहाव तेज होने के कारण लाइफ जैकेट पहनना अनिवार्य है। भारी बारिश की वजह से हमने ज्यादा सामान नहीं लिया और बस पानी की बोतल लेके आगे बढ़ने लगे। किस्मत से मेरा फ़ोन वाटरप्रूफ है जिसने मुझे ट्रैकिंग के वक़्त खूबसूरत तस्वीरें लेने में बहुत मदद की।
यह मेरी पहली इतनी लम्बी ट्रैकिंग थी। हम लोग आने वाले रोमांच को लेकर बहुत ही उत्सुक थे।
रेल की पटरी और रेलगाड़ी
झरने तक की ट्रैकिंग कोलेम के रेलवे स्टेशन से शुरू होती है जिसमे शुरू के 4 किलोमीटर रेल की पटरी पे चलकर जाना होता है। अगर आप उसी पटरी पर अगले 10 किलोमीटर तक सीधे चलते रहो तो झरने तक ऐसे ही पहुंच जाओगे पर पिछले कुछ समय में हुई दुर्घटनाओं के कारण अब पटरी पे चलके झरने तक जाने की अनुमति नही है। हमने दोपहर के 12:15 पे अपनी ट्रैकिंग की शुरुआत की। चार किलोमीटर पटरी पर चलने के बाद हम जंगल की तरफ उतर गए।
पटरी पे चार किलोमीटर पूरा करने में हमें पूरा एक घंटा लगा। रास्ते में हमारे सामने से दो रेलगाड़ी भी निकली। हर बार जब भी रेलगाड़ी आती तो हमे साइड में उतर कर रेलगाड़ी के निकलने का इंतज़ार करना पड़ता और उसके बाद हम आगे बढ़ते। एक रेलगाड़ी में तो 50 से ज्यादा डब्बे थे जिसकी वजह से हमे काफी देर रुकना पड़ा।
जंगल और खानपान की दुकान
जंगल में घुसने के बाद हम मिट्टी के रास्ते पर तीन किलोमीटर तक चलते रहे। बीच में एक चेक पोस्ट पर फारेस्ट डिपार्टमेंट के लिए 25 रूपये की रसीद कटानी पड़ती है। रास्ता बहुत ही भीगा हुआ और फिसलन भरा था। हम बहुत सावधानी से आगे बढ़ रहे थे।
हम इस सड़क पे तीन किलोमीटर तक चलते रहे। दूसरे मौसम में यही सड़क गाड़ियो के लिए इस्तेमाल की जाती है। रास्ते में हमने काजू के बाग देखे और एक छोटी सी फैक्ट्री जहाँ गोवा की मशहूर ड्रिंक फेंनी बन रही थी।
आसपास की हरियाली बहुत ही खूबसूरत थी जिसने मुझे जीवित होने का एहसास दिलाया और एक्टिव महसूस कराया। तीन किलोमीटर तक मेन रोड पर चलने के बाद हम सोनौलिम पहुंचे। यह एक छोटा सा गांव है जिसमे कुछ घर, एक बड़ा मंदिर और कुछ दुकानें थीं। मंदिर का नाम दूधसागर देवी मंदिर है। बारिश बहुत तेजी से हो रही थी। हमने थोड़ा रुकने का निश्चय किया और वापसी के समय के लिए लंच आर्डर किया।
झरने की तरफ जाता हुआ फिसलन भरा रास्ता |
हम इस सड़क पे तीन किलोमीटर तक चलते रहे। दूसरे मौसम में यही सड़क गाड़ियो के लिए इस्तेमाल की जाती है। रास्ते में हमने काजू के बाग देखे और एक छोटी सी फैक्ट्री जहाँ गोवा की मशहूर ड्रिंक फेंनी बन रही थी।
काजू के बाग |
आसपास की हरियाली बहुत ही खूबसूरत थी जिसने मुझे जीवित होने का एहसास दिलाया और एक्टिव महसूस कराया। तीन किलोमीटर तक मेन रोड पर चलने के बाद हम सोनौलिम पहुंचे। यह एक छोटा सा गांव है जिसमे कुछ घर, एक बड़ा मंदिर और कुछ दुकानें थीं। मंदिर का नाम दूधसागर देवी मंदिर है। बारिश बहुत तेजी से हो रही थी। हमने थोड़ा रुकने का निश्चय किया और वापसी के समय के लिए लंच आर्डर किया।
"असली" रोमांच
अगला बचा हुआ रास्ता हमारी ट्रैकिंग का सबसे ज्यादा रोमाचिंत रास्ता होने वाला था। करीब ढाई बज चुके थे जब हमने अपनी ट्रैकिंग का तीसरा चरण शुरू किया। अब हम मेन सड़क से हटके पहाड़ो के रस्ते पे चलने लगे। पूरा रास्ता बारिश के कारण पानी से भरा हुआ था।
उबड़ खाबड़ रास्ता पानी से भरा हुआ |
चिकनी मिट्टी के कारण रास्ता बहुत फिसलना हो गया था। हमें चलते वक़्त इसका भी ध्यान रखना था की हमारा पैर उस मिट्टी में धसे नहीं। चलते हुए, पेड़ की शाखाएं भी हमारे शरीर पर लग रही थीं। हमें आगे बढ़ते हुए सामने और पीछे का ध्यान रखना पड़ रहा था।
तेज बहती हुई नदी और बांस का पुल
हमें कई बार नदी और छोटी बहती हुईं धाराओं को पार करना पड़ा। पहली बारी में नदी बहुत गहरी थी तथा धरा बहुत तेज थी। वह नदी को पार करने के लिए बांस से आधे बने हुए पुल से गुजरना होता है। उस पुल से गुजरना बहुत ही खतरनाक एवं साहस भरा था। एक हल्का सा पैर फिसलता तो हम सीधे नदी में बह जाते। पुल के अगले छोर पे निर्माण पूरा नही हुआ था और हमे बहुत ध्यान से धीरे धीरे पुल से नीचे उतरना पड़ा।
बांस का पल, आधा बना हुआ |
आखिरकार, थोड़ा और चलने के बाद हमें अब झरने का ऊपरी हिस्सा दिखने लगा था। "वाओ! कितना बड़ा झरना है ये", मेरे एक साथी ने कहा। झरने का ऊपरी हिस्सा इतना ऊंचा था की वो बादलों से ढक गया था और ठीक से दिखाई नही दे रहा था। हम झरने की तरफ आगे बढ़ने लगे।
दूधसागर झरना दूर से |
सारे रोमांच भरे रास्ते से गुजरते हुए हम दूधसागर झरने के गेट पे पहुंचे। पर अभी तक मेन फाल्स नही आया था। हमने कुछ तस्वीरें खींची और आगे वाले और उबड़ खाबड़ रस्ते पे बढ़ने लगे।
दूधसागर फाल्स (झरना )
अंत में, करीब 3:30 पे हम झरने के पास पहुंचे। तेज बारिश के कारण पानी का बहाव बहुत तेज था जिसकी वजह से हमे नदी के बीच में जाने की अनुमति नही मिली।
सचमुच वो "दूध का सागर" था। 300 मीटर से नीचे गिरता हुआ पानी जब चट्टानों से टकरा रहा था तब वो दूध जैसा ही चमक रहा था !!
नीचे वीडियो में आप खुद ही दूधसागर की खूबसूरती का आनंद लें !
सोनौलिम पर लंच
झरने पे मस्ती करने के बाद हम सोनौलिम वापस आगये जहाँ पे हमने लंच आर्डर किया था। 13 किलोमीटर की ट्रैकिंग करने के बाद हमे बहुत जोरों से भूख लगी थी। खाना बहुत ही लजीज़ था - दाल, चावल, सब्जियां, आचार और पापड़! बहार बहुत तेज बारिश हो रही थी।एक दूसरे ग्रुप में से किसी ने हमें बताया की स्टेशन पर कोलेम की तरफ जाने वाली ट्रेन आ रही है और हम खाना छोड़ कर स्टेशन की तरफ भागने लगे। आगे जाकर पता लगा की वो मालगाड़ी थी और स्टेशन पर रुकी नहीं। मुझे इतना लज़ीज खाना छोड़ कर भागने का बहुत अफ़सोस हुआ :(
उसके बाद हमने वापस कोलेम की ओर ट्रेक करना शुरू कर दिया और शाम को 6:30 बजे हम कोलेम वापस आ गये। रेलगाड़ी की पटरी का ऊपर नीचे होने के कारण मेरे जूते का सोल निकल गया और मुझे वहां से वापस आने में थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा।
टिप : पटरी पर मैंने और भी बहुत सारी टूटी हुई चप्पलें देखीं। ट्रैकिंग करने से पहले ये सुनिश्चित कर लें की आपने अच्छी क्वालिटी के ट्रैकिंग शूज पहने हैं वरना आपको नंगे पैर भी चलना पड़ सकता है जोकि हानिकारक है।
कोलेम वापस आकर हमने वडा पाव खाया और एक कड़क चाय पी। इसके बाद हम तेज बारिश में गोवा वापस लौट गए।
मेरे लिए यह बहुत ही गजब का अनुभव रहा। सुबह घर से निकलने से पहले मैंने इतना नहीं सोचा था। यह मेरी ज़िन्दगी की सबसे रोमांच भरी ट्रैकिंग थी।
हमें भी आप अपने दूधसागर झरने पे किये हुए रोमांचो के बारे में बताएं और अपना फीडबैक दें!
पढ़ने के लिए धन्यवाद्!
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