बुधवार, 9 अक्टूबर, 2019
पिछले हफ्ते मैं श्रीलंका के पांच दिनों के सफर पर घूमने के लिए और वहां की संस्कृति को जानने गया था। अपने इस पांच दिन की यात्रा में मैंने तीन दिन वहां के धार्मिक स्थानों पर ही बिताये।
श्रीलंका बहुत ही सुन्दर और शांतिपूर्ण जगह है। यहाँ की 70% जनसंख्या बौद्ध धर्म को मानती है। हज़ारों साल पहले बौद्ध धर्म को भारत से श्रीलंका में लाया गया था। उसके बाद कई राजा महाराजा हुए जिन्होंने इस धर्म को बढ़ावा दिया और श्रीलंका में फैलाया। इसी वजह से श्रीलंका के ऐसे कई इलाके हैं जहाँ आज भी हज़ारों साल पुराने भगवान बुद्ध के मंदिर, स्तूप और पुरानी इमारतें बनी हुई हैं।
मैंने इतने कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा ऐसी जगहों को कवर करने की कोशिश की। पहले दिन मैं कोलंबो पहुंचा और आसपास का इलाका देखा।
अगले दिन मेरा जन्मदिन था और मैंने सुबह सुबह भगवान बुद्ध के एक मंदिर जाने का प्लान किया था। मेरा पहला ऐसा डेस्टिनेशन था - गंगा रम्य मंदिर।
अगला पड़ाव भगवान बुद्ध की एक पर मूर्ति थी जो की जेड पत्थर क बनी हुई थी। वह मूर्ति यहाँ के राजा को बर्मा के एक कलाकार ने दान की थी। मूर्ति की चमक चकित करने वाली थी। उसके पास ही सफ़ेद पत्थर का एक छोटा का स्तूप बना हुआ था। मंदिर में ऊपर की तरफ बच्चों का स्कूल भी चल रहा था जहाँ पे सैकड़ों बच्चे पढ़ रहे थे।
ऊपर पहले फ्लोर पर ही एक म्यूजियम था जहाँ पे भगवान बुद्ध के समय की कलाकृति रखी और लोगों की दी हुई भेंट रखी हुई थीं। म्यूजियम के पास एक पवित्र बोधी पेड़ था जिसकी सब पूजा कर रहे थे और और कमल का फूल अर्पित कर रहे थे।
मंदिर में और भी म्यूजियम थे जहाँ पर लोगों की दी हुई भेंट रखी थी। इन भेटों में पुरानी गाड़ी जैसे बेंटले, मर्सीडीज़ जैसे ब्रांड भी थे। पूरा मंदिर घूमने में मुझे करीब दो घंटे लगे पर उस मंदिर में बिताया एक एक पल बहुत ही शांति और शिक्षा से भरा था।
आखिरकार मैं शाम को पांच बजे अनुराधापुरा पहुंच गया। बस से नीचे उतरते ही तेज बारिश शुरू हो गयी और मैं जल्दी से अपने होटल के लिए निकल गया। मेरा होटल शहर से थोड़ा हटकर ओल्ड सिटी में था जो की अधिकतर जंगल से भरा इलाका था। तेज बारिश की वजह से मैं पहले होटल में ही फ़स गया था। थोड़ी देर बाद जब बारिश बंद हुई तो अँधेरा हो चुका था।
अभी शाम के सात ही बजे थे और मैंने बहार निकलकर अनुराधापुरा घूमने का निश्चय किया। आसपास रोड पर आगे जाने के लिए कोई साधन नहीं मिला और मैं रुवनवेलिसय स्तूप की तरफ पैदल ही निकल पड़ा। करीब डेढ़ किलोमीटर तक अँधेरे में पैदल चलने के बाद कुछ दुकानें पड़ी जहाँ पर मैंने पहली बार श्रीलंका की मशहूर वेजिटेबल रोटी का लुफ़्त उठाया। किस्मत से वही पर मुझे एक ऑटो वाला मिला जो मुझे दगबा लेकर जाने के लिए राज़ी हो गया।
उसने मुझे रास्ते में और भी दगबा और महाबोधी मंदिर के बारे में बताया जहाँ पर मैं उस शाम में जा सकता था। मैंने उससे सारे स्तूप और मंदिर घुमाने और वापसी में होटल छोड़ने का किराया तय किया और उसके साथ चल पड़ा।
मैंने इसकी एक परिक्रमा लगाई और भगवान बुद्ध के हाथ जोड़े और वापस आ गया। यह सब करने में पूरे बीस मिनट निकल गए। स्तूप की इतनी ज्यादा सुंदरता मैंने पहले कभी नहीं देखी थी। अजीब सी शांति थी वहां।
मंदिर में बहुत भीड़ होने के बाद भी अंदर एक शांति का वातावरण बना हुआ था जो कि बहुत ही आनंदमय था। कहा जाता है कि यहाँ भगवान बुद्ध के दांत हैं जिसकी सब पूजा करते हैं और इसी वजह से इस मंदिर का नाम सेक्रेड टूथ रेलिक पड़ा है।
भगवान गौतम बुद्ध के असली अवशेष होने के कारण इस मंदिर की बहुत मान्यता है और दूर दूर से लोग यहाँ दर्शन करने के लिए आते हैं। मंदिर में नीचे बीच में एक हॉल बना हुआ है जिसमें पुराने ज़माने में भिक्षुक घंटों बैठकर भगवान का ध्यान लगाया करते थे।
मंदिर के पहले फ्लोर पर पवित्र टूथ रेलिक का कमरा है जहाँ पर भगवान बुद्ध के दांत एक सोने के बक्से में रखे हुए हैं। आप इनको देख नहीं सकते और लोग बाहर से ही पूजा करते हैं।
मैं वहां पर थोड़ी देर रुका, प्रार्थना की और नीचे आ गया। मंदिर की दूसरी तरफ ग्राउंड फ्लोर पर भगवान बुद्ध का एक और मंदिर है जहाँ पर भगवान के दांत श्रीलंका में कैसे आये उसके बारे में कहानी को तस्वीर के रूप में बताया हुआ है। यह मंदिर बहुत चमक रहा था।
मंदिर के पीछे एक दो फ्लोर का म्यूजियम था जिसकी टिकट बाहर ली हुई टिकट में शामिल थी। म्यूजियम में पुराने राजाओं के बारे में, उनके द्वारा इस्तेमाल किये गए कपड़े, बर्तन, आभूषण जैसी चीज़ो को दर्शाया हुआ था।
दूसरे फ्लोर पर म्यूजियम में भगवान बुद्ध पर चढ़ायी हुईं भेंट थीं। किसी ने सोने के जेवर तो किसी ने पैसे और किसी ने तरह तरह के बर्तन और बहुत कुछ भेंट किया था। सब अपनी मनोकामना लेकर भगवान के पास जाते थे।
मंदिर के बाहर का वातावरण बहुत ही अनुकूल था। जगह जगह पर बैठने के स्थान थे। मंदिर के पीछे की तरफ एक और म्यूजियम था जो अलग अलग देशों के बुद्धिज़्म के तौर तरीकों के बारे में था।
कैंडी के बाद उसी रात मैं नुवारा एलिया नाम के हिल स्टेशन पर चला गया जहाँ पहुँचने में मुझे चार घंटे लगे। रात में वही रुकने के बाद मैं सुबह वापस अपने सफर पर निकला।
नोट: ऊपर लिखे हुए सभी टिकट के किराये अक्टूबर 3, 2019 तक के हैं। समय के साथ साथ इसमें बदलाव हो सकता है और मैं इसका ज़िम्मेदार नहीं हूँ। यात्रा से पहले कृपया अपने ट्रेवल एजेंट से सही किराये का पता कर लें।
मैं श्रीलंका में और भी कई सारे स्थानों पर गया जैसे कि बोटैनिकल गार्डन्स, व्यू पॉइंट्स और लोकल साइट्स। इन सब के बारे में मैं अपने आगे आने वाले ब्लॉग्स में लिखूंगा।
मुझे कमैंट्स में बताएं कि आपको मेरा यह ब्लॉग कैसा लगा और अपने श्रीलंका के अनुभव के बारे में लिखें।
पढ़ने के लिए धन्यवाद !
पिछले हफ्ते मैं श्रीलंका के पांच दिनों के सफर पर घूमने के लिए और वहां की संस्कृति को जानने गया था। अपने इस पांच दिन की यात्रा में मैंने तीन दिन वहां के धार्मिक स्थानों पर ही बिताये।
श्रीलंका बहुत ही सुन्दर और शांतिपूर्ण जगह है। यहाँ की 70% जनसंख्या बौद्ध धर्म को मानती है। हज़ारों साल पहले बौद्ध धर्म को भारत से श्रीलंका में लाया गया था। उसके बाद कई राजा महाराजा हुए जिन्होंने इस धर्म को बढ़ावा दिया और श्रीलंका में फैलाया। इसी वजह से श्रीलंका के ऐसे कई इलाके हैं जहाँ आज भी हज़ारों साल पुराने भगवान बुद्ध के मंदिर, स्तूप और पुरानी इमारतें बनी हुई हैं।
मैंने इतने कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा ऐसी जगहों को कवर करने की कोशिश की। पहले दिन मैं कोलंबो पहुंचा और आसपास का इलाका देखा।
अगले दिन मेरा जन्मदिन था और मैंने सुबह सुबह भगवान बुद्ध के एक मंदिर जाने का प्लान किया था। मेरा पहला ऐसा डेस्टिनेशन था - गंगा रम्य मंदिर।
कोलंबो का खूबसूरत गंगा रम्य मंदिर
अगले दिन सुबह उठके मैं गंगा रम्य मंदिर गया। वहां जाने के लिए मैंने पैटाह बस स्टेशन से लोकल बस पकड़ी जिसने मुझे मंदिर से थोड़ी दूरी पर उतार दिया। टूरिस्टों के लिए मंदिर में जाने का LKR 300 का चार्ज था। मैंने अपने जूते बहार उतारे और अंदर चला गया। अंदर से मंदिर बहुत ही खूबसूरत था और कई सरे हिस्सों में बटा हुआ था। मंदिर के हर हिस्से पर एक नंबर पड़ा हुआ था जो लोगों को मंदिर में घूमने की दिशा दिखा रहा था।
मंदिर का पहला स्थान था भगवान बुद्ध का एक कमरा जिसमें एक बहुत विशाल बेहतरीन मूर्तियां बनी हुई थीं। मैंने वहां रूककर प्रार्थना की और कुछ तस्वीरें भी खींची।गंगा रम्य मंदिर, कोलंबो |
अगला पड़ाव भगवान बुद्ध की एक पर मूर्ति थी जो की जेड पत्थर क बनी हुई थी। वह मूर्ति यहाँ के राजा को बर्मा के एक कलाकार ने दान की थी। मूर्ति की चमक चकित करने वाली थी। उसके पास ही सफ़ेद पत्थर का एक छोटा का स्तूप बना हुआ था। मंदिर में ऊपर की तरफ बच्चों का स्कूल भी चल रहा था जहाँ पे सैकड़ों बच्चे पढ़ रहे थे।
गंगा रम्य में पढ़ते हुए बच्चे |
ऊपर पहले फ्लोर पर ही एक म्यूजियम था जहाँ पे भगवान बुद्ध के समय की कलाकृति रखी और लोगों की दी हुई भेंट रखी हुई थीं। म्यूजियम के पास एक पवित्र बोधी पेड़ था जिसकी सब पूजा कर रहे थे और और कमल का फूल अर्पित कर रहे थे।
मंदिर में और भी म्यूजियम थे जहाँ पर लोगों की दी हुई भेंट रखी थी। इन भेटों में पुरानी गाड़ी जैसे बेंटले, मर्सीडीज़ जैसे ब्रांड भी थे। पूरा मंदिर घूमने में मुझे करीब दो घंटे लगे पर उस मंदिर में बिताया एक एक पल बहुत ही शांति और शिक्षा से भरा था।
गंगा रम्य मंदिर में जेड बुद्ध की मूर्ति |
अनुराधापुरा के मुख्य स्तूप और महा बोधी पेड़ की शाखा
गंगा रम्य मंदिर में दर्शन करने के बाद मैं अपने होटल से चेक आउट करके मध्य श्रीलंका में बसे हज़ारों साल पुराने शहर अनुराधापुरा निकल गया। रेलवे डिपार्टमेंट की हड़ताल होने के कारण मुझे यह सफर बस से तय करना पड़ा जो की ज्यादा ख़ास नहीं रहा। बस में बहुत ज्यादा भीड़ थी।आखिरकार मैं शाम को पांच बजे अनुराधापुरा पहुंच गया। बस से नीचे उतरते ही तेज बारिश शुरू हो गयी और मैं जल्दी से अपने होटल के लिए निकल गया। मेरा होटल शहर से थोड़ा हटकर ओल्ड सिटी में था जो की अधिकतर जंगल से भरा इलाका था। तेज बारिश की वजह से मैं पहले होटल में ही फ़स गया था। थोड़ी देर बाद जब बारिश बंद हुई तो अँधेरा हो चुका था।
अभी शाम के सात ही बजे थे और मैंने बहार निकलकर अनुराधापुरा घूमने का निश्चय किया। आसपास रोड पर आगे जाने के लिए कोई साधन नहीं मिला और मैं रुवनवेलिसय स्तूप की तरफ पैदल ही निकल पड़ा। करीब डेढ़ किलोमीटर तक अँधेरे में पैदल चलने के बाद कुछ दुकानें पड़ी जहाँ पर मैंने पहली बार श्रीलंका की मशहूर वेजिटेबल रोटी का लुफ़्त उठाया। किस्मत से वही पर मुझे एक ऑटो वाला मिला जो मुझे दगबा लेकर जाने के लिए राज़ी हो गया।
उसने मुझे रास्ते में और भी दगबा और महाबोधी मंदिर के बारे में बताया जहाँ पर मैं उस शाम में जा सकता था। मैंने उससे सारे स्तूप और मंदिर घुमाने और वापसी में होटल छोड़ने का किराया तय किया और उसके साथ चल पड़ा।
रुवनवेलिसय स्तूप - सफ़ेद संगमरमर जैसा
ऑटो वाला सबसे पहले मुझे अनुराधापुरा के सबसे प्रसिद्ध स्तूप - रुवनवेलिसय लेकर गया। वह स्तूप चाँद की तरह एकदम सफ़ेद चमक रहा था। रविवार होने की वजह से वहां पे पूजा करने काफी लोकल लोग भी आये हुए थे जिन्होने वहां के वातावरण को एकदम पवित्र बना रखा था। चारों तरफ से मंत्रों की आवाज़ आ रही थी। मैं यह दृश्य देखकर अचंभित था। इतना बड़ा स्तूप बना हुआ था। मैं पहले एक बार वाराणसी के पास बसे सारनाथ स्तूप गया था पर ये एकदम अलग था।
रुवनसेवालिया स्तूप, अनुराधापुरा |
मैंने इसकी एक परिक्रमा लगाई और भगवान बुद्ध के हाथ जोड़े और वापस आ गया। यह सब करने में पूरे बीस मिनट निकल गए। स्तूप की इतनी ज्यादा सुंदरता मैंने पहले कभी नहीं देखी थी। अजीब सी शांति थी वहां।
हज़ार साल पुराना जेठवनारमय स्तूप
अब ऑटो वाला जिसका नाम राउन था, मुझे एक हज़ार साल पुराने जेठवनारमय स्तूप लेकर गया। यह पूरा पत्थर से बना हुआ था और ब्राउन कलर का था। इतनी पुरानी इमारत सच में एक मिसाल थी। यहाँ पर भीड़ नहीं थी और मैंने इसे बहुत अच्छे से देखा। यहाँ के एक राजा ने इस स्तूप की स्थापना की थी। साइड में एक छोटा सा मंदिर था जहाँ पर कुछ पूजा चल रही थी।
यह स्तूप देखने में बहुत ही पुराना, सुन्दर और विशाल था। यहाँ भी मैंने परिक्रमा की और करीब 20 मिनट का समय व्यतीत किया।
इसके आसपास के पार्क का वातावरण बहुत ही शांत था। बस कुछ बंदरों के शोर मचाने की आवाज़ें आ रही थी। इसको बहुत अच्छे से बनाया रखा हुआ है जिसकी वजह से ये आज भी नया जैसा लगता है।
मैंने उसी शाम अनुराधापूरा के सारी महत्वपूर्ण जगहों को देख लिया था। मैं रात में वापस अपने होटल गया और डिनर करकर सो गया। अगली सुबह मुझे नज़दीकी एक स्थान - मिहीनताले निकलना था।
जेठवनारमय स्तूप का रात्रि का दृश्य |
यह स्तूप देखने में बहुत ही पुराना, सुन्दर और विशाल था। यहाँ भी मैंने परिक्रमा की और करीब 20 मिनट का समय व्यतीत किया।
ईसा से भी पुराना थुपरमाया दागबा (स्तूप)
जेठवनारमय से कुछ ही दूरी पर महामेव्ना पार्क में थुपरमाया दगबा थी। यह एक छोटा स्तूप है जिसकी उम्र करीब 2400 साल पुरानी है। घंटी के आकार में बना यह इस द्वीप का सबसे पुराना स्तूप है। कहा जाता है की समय समय पर इस स्तूप को कई राजाओं ने नष्ट किया। बाद मे इसका पुनः निर्माण कराया गया।थुपरमाया दागबा, अनुराधापुरा |
इसके आसपास के पार्क का वातावरण बहुत ही शांत था। बस कुछ बंदरों के शोर मचाने की आवाज़ें आ रही थी। इसको बहुत अच्छे से बनाया रखा हुआ है जिसकी वजह से ये आज भी नया जैसा लगता है।
मिरिसावतिया विहार स्तूप की चमक
अभी मेरा अनुराधापुरा के स्तूप देखने का सफर पूरा नहीं हुआ था। मेरा अगला पड़ाव था - मिरिसावतिया स्तूप। सिंहला में मिर्च को "मिरिस" बोला जाता है। कहा जाता है कि वहां के राजा ने बौद्ध भिक्षुकों से खाने का पूछे बिना ही मिर्च से बनी एक सब्जी खुद से खा ली थी। इसका पश्चाताप करने के लिए राजा ने यह दगबा बनवाई और इसका नाम "मिरिसवतिया" पड़ गया।
चमकता हुआ मिरिसवतिया स्तूप, अनुराधापुरा |
जया श्री महा बोधी मंदिर
यह मंदिर बौद्धगया में स्थित श्री महा बोधी पेड़ जहाँ पर भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उसके नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर में बौद्धगया के उस महा बोधी पेड़ की एक टहनी स्थापित है। यह टहनी को अनुराधापुरा में 288 ईसा पूर्व में लाया गया था। यह मंदिर यहाँ पर सबसे ज्यादा पूजा जाता है। त्यौहार के समय में भिक्षुक इसके नीचे बैठकर ध्यान लगाते हैं।
श्री महा बोधी पेड़ की पवित्र शाखा, अनुराधापुरा |
मैंने उसी शाम अनुराधापूरा के सारी महत्वपूर्ण जगहों को देख लिया था। मैं रात में वापस अपने होटल गया और डिनर करकर सो गया। अगली सुबह मुझे नज़दीकी एक स्थान - मिहीनताले निकलना था।
श्री महा बोधी शाखा के नीचे मंदिर |
मिहीनताले में भगवान बुद्ध की मूर्ति और चोटी पर दगबा
अगली सुबह मैं बस से अनुराधापुरा से मिहीनताले गया। यह अनुराधापुरा से आधे घंटे की दूरी पर है। बस स्टॉप पर उतर कर मैंने एक ऑटो (टुकटुक) किया जो मुझे LKR 150 में मिहीनताले के मंदिर ले गया। मंदिर करीब दो किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी पर था। अंदर जाने के लिए विदेशियों को LKR 500 की टिकट लेनी पड़ती है। मंदिर के शुरू में कुछ पुराने बने हुए हॉल हैं जो कि अब टूट चुके हैं।
कहा जाता है कि पुराने समय में भिक्षुक महिंदा भारत से आकर यहाँ के राजा देवानाम्प्रिय तिस्सा से आकर मिले थे और बौद्ध धर्म की स्थापना की थी। यह एक धार्मिक स्थान है।
अल्मस हॉल, मिहीनताले |
कहा जाता है कि पुराने समय में भिक्षुक महिंदा भारत से आकर यहाँ के राजा देवानाम्प्रिय तिस्सा से आकर मिले थे और बौद्ध धर्म की स्थापना की थी। यह एक धार्मिक स्थान है।
करीब 200 सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहाड़ की चोटी पर जाना होता है जहाँ पर भगवान बुद्ध की एक विशाल और सुन्दर मूर्ति बनी हुई है और दो स्तूप हैं - अंबास्थाला दगबा और महा स्तूप । आसपास का वातावरण बहुत शांत है और ऊपर से पूरा मिहीनताले क़स्बा दिखाई देता है। मैंने वहां करीब दो घण्टे बिताये। वहां का पुलिस स्टाफ बहुत ही मददगार था। उन्होंने मुझे अपने ऑफिस में बैग रखने दिया।
मैं जब ऊपर पहुँचा तो भक्तों का एक समूह संगीत और गीत गाता हुआ महा स्तूप की तरफ बढ़ रहा था। संगीत बहुत ही मधुर और रम्य था।
मिहीनताले से वापस आते वक़्त मैंने बस स्टैंड तक पैदल आने का निर्णय लिया जो की एक छोटे से जंगल से होकर गुजरता है। रास्ता बहुत ही सुनसान था। मैंने रास्ते में एक सांप और एक बहुत बड़ी छिपकली भी देखी। मैं वहां रुका नहीं और चुपचाप आगे बढ़ता रहा।
सीगिरया में अंदर जाने के लिए टिकट की जरूरत पड़ती है। भारतीय पासपोर्ट पर इसकी कीमत 15 अमेरिकन डॉलर है। वेस्ट से आये टूरिस्टों को 30 अमेरिकन डॉलर देने पड़ते हैं। मैंने टिकट खरीदी और अंदर चल दिया। शाम के तीन बज रहे थे और सूरज ढलना शुरू हो गया।
इसमें अंदर घुसते ही सीढ़ियों से पहले कुछ खूबसूरत बगीचे आते हैं। मैं सीढ़ी चढ़ता हुआ आगे बड़ा और खूब सारी तस्वीरें भी लीं। ऊपर से आसपास का नज़ारा अचंभित कर देने वाला था। दूर दूर तक और कोई ऊंची चट्टान नहीं थी। पता नहीं ये चट्टान यहाँ कैसे आ गयी। इस चट्टान को एक पुराना व शांत ज्वालामुखी भी माना जाता है।
सिगिरिया किले से वापस आने के बाद मेरा प्लान दम्बुल्ला के रॉयल केव मंदिर जाने का था पर अँधेरा हो जाने के कारण मुझे अपना प्लान बदलना पड़ा और मैं उसी रात बस पकड़कर कैंडी आ गया।
मैं जब ऊपर पहुँचा तो भक्तों का एक समूह संगीत और गीत गाता हुआ महा स्तूप की तरफ बढ़ रहा था। संगीत बहुत ही मधुर और रम्य था।
मिहीनताले में ऊपर भगवान बुद्ध की प्रतिमा |
मिहीनताले से वापस आते वक़्त मैंने बस स्टैंड तक पैदल आने का निर्णय लिया जो की एक छोटे से जंगल से होकर गुजरता है। रास्ता बहुत ही सुनसान था। मैंने रास्ते में एक सांप और एक बहुत बड़ी छिपकली भी देखी। मैं वहां रुका नहीं और चुपचाप आगे बढ़ता रहा।
मिहीनताले का विशाल स्तूप |
श्रीलंका की सबसे मशहूर साइट - सिगिरिया रॉक
अगर आप श्रीलंका गए और सिगिरिया नहीं गए तो आपने वहां की सबसे मशहूर जगह को मिस कर दिया। मध्य श्रीलंका में बसा दम्बुल्ला से करीब 17 किलोमीटर दूर ये जगह एक समय में राजा कश्यप का किला हुआ करती थी।
यह किला 200 मीटर ऊंची एक चट्टान पर बना हुआ है जिस पर जाने के लिए 1200 सीढ़ियां चढ़ कर जाना पड़ता है। यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट होने की वजह से यहाँ बहुत से सैलानी आते हैं। मिहीनताले से बस लेकर मैं पहले दम्बुल्ला पंहुचा और वहां से सिगिरिया की बस ली। बस से मेरा कुल खर्चा LKR 140 आया।
200 मीटर ऊंची सिगिरिया रॉक और उस पर बना महल |
सीगिरया में अंदर जाने के लिए टिकट की जरूरत पड़ती है। भारतीय पासपोर्ट पर इसकी कीमत 15 अमेरिकन डॉलर है। वेस्ट से आये टूरिस्टों को 30 अमेरिकन डॉलर देने पड़ते हैं। मैंने टिकट खरीदी और अंदर चल दिया। शाम के तीन बज रहे थे और सूरज ढलना शुरू हो गया।
सिगिरिया रॉक पर ऊपर जाती हुई सीढ़ियां |
इसमें अंदर घुसते ही सीढ़ियों से पहले कुछ खूबसूरत बगीचे आते हैं। मैं सीढ़ी चढ़ता हुआ आगे बड़ा और खूब सारी तस्वीरें भी लीं। ऊपर से आसपास का नज़ारा अचंभित कर देने वाला था। दूर दूर तक और कोई ऊंची चट्टान नहीं थी। पता नहीं ये चट्टान यहाँ कैसे आ गयी। इस चट्टान को एक पुराना व शांत ज्वालामुखी भी माना जाता है।
थोड़ा ऊपर चलने के बाद एक शेर के पंजे का गेट आया जिसे - लायन पॉ भी बोला जाता है। मुझे पूरी 1200 सीढ़ियाँ चढ़ने में 40 मिनट लगे जिसमें मैं कई बार बीच में आराम करने और तस्वीरें लेने के लिए रुका।
ऊपर का नज़ारा अविस्मरणीय था। चारों तरफ हरियाली! किला अधिकतर टूट चुका है और बस उसका बेस रह गया है। ऊपर जाते ही अचानक से तेज बारिश शुरू हो गयी। मैं ऊपर बारिश की पूरी त्यारी के साथ गया था। मैंने अपना रेन जैकेट कसा और किले के चारों तरफ घूमने निकल गया। अँधेरा बढ़ने के कारण मैं ऊपर ज्यादा समय व्यतीत नहीं कर सका।
सिगिरिया रॉक से नीचे का दृश्य
सिगिरिया रॉक से नीचे का दृश्य
अगर आप श्रीलंका जाने का प्लान करते हैं तो यहाँ ज़रूर जाएं। मैं इस जगह के बारे में विस्तार से अपने एक अलग ब्लॉग में लिखूंगा।
सिगिरिया किले से वापस आने के बाद मेरा प्लान दम्बुल्ला के रॉयल केव मंदिर जाने का था पर अँधेरा हो जाने के कारण मुझे अपना प्लान बदलना पड़ा और मैं उसी रात बस पकड़कर कैंडी आ गया।
कैंडी का सेक्रेड टूथ रेलिक मंदिर
कैंडी में रात में रुकने के बाद अगले दिन सुबह होटल में अपना बैग रखकर मैं कैंडी के सबसे मशहूर सेक्रेड टूथ रेलिक मंदिर के लिए निकला। मंदिर मेरे होटल से चलने की दूरी पर ही था। मंगलवार का दिन था और सड़क पर बहुत भीड़ थी। कैंडी झील के किनारे से गुजरता हुआ मैं मंदिर में पहुँचा। मंदिर में लोकल जनता की एंट्री फ्री थी व सार्क देशों के लिए LKR 1000 की टिकट थी जिसमे भारत भी शामिल है। अन्य देशों के पासपोर्ट के लिए एंट्री LKR 1500 की थी। टिकट लेने और अपने जूतों को चप्पल स्टैंड में रखने के बाद मैं मंदिर में अंदर गया।मंदिर में बहुत भीड़ होने के बाद भी अंदर एक शांति का वातावरण बना हुआ था जो कि बहुत ही आनंदमय था। कहा जाता है कि यहाँ भगवान बुद्ध के दांत हैं जिसकी सब पूजा करते हैं और इसी वजह से इस मंदिर का नाम सेक्रेड टूथ रेलिक पड़ा है।
टूथ रेलिक के नीचे वाला मंदिर |
भगवान गौतम बुद्ध के असली अवशेष होने के कारण इस मंदिर की बहुत मान्यता है और दूर दूर से लोग यहाँ दर्शन करने के लिए आते हैं। मंदिर में नीचे बीच में एक हॉल बना हुआ है जिसमें पुराने ज़माने में भिक्षुक घंटों बैठकर भगवान का ध्यान लगाया करते थे।
मंदिर के पहले फ्लोर पर पवित्र टूथ रेलिक का कमरा है जहाँ पर भगवान बुद्ध के दांत एक सोने के बक्से में रखे हुए हैं। आप इनको देख नहीं सकते और लोग बाहर से ही पूजा करते हैं।
मेन मंदिर साइड से |
मैं वहां पर थोड़ी देर रुका, प्रार्थना की और नीचे आ गया। मंदिर की दूसरी तरफ ग्राउंड फ्लोर पर भगवान बुद्ध का एक और मंदिर है जहाँ पर भगवान के दांत श्रीलंका में कैसे आये उसके बारे में कहानी को तस्वीर के रूप में बताया हुआ है। यह मंदिर बहुत चमक रहा था।
नया मंदिर और म्यूजियम |
मंदिर के पीछे एक दो फ्लोर का म्यूजियम था जिसकी टिकट बाहर ली हुई टिकट में शामिल थी। म्यूजियम में पुराने राजाओं के बारे में, उनके द्वारा इस्तेमाल किये गए कपड़े, बर्तन, आभूषण जैसी चीज़ो को दर्शाया हुआ था।
दूसरे फ्लोर पर म्यूजियम में भगवान बुद्ध पर चढ़ायी हुईं भेंट थीं। किसी ने सोने के जेवर तो किसी ने पैसे और किसी ने तरह तरह के बर्तन और बहुत कुछ भेंट किया था। सब अपनी मनोकामना लेकर भगवान के पास जाते थे।
मंदिर के बाहर का वातावरण बहुत ही अनुकूल था। जगह जगह पर बैठने के स्थान थे। मंदिर के पीछे की तरफ एक और म्यूजियम था जो अलग अलग देशों के बुद्धिज़्म के तौर तरीकों के बारे में था।
उसी शाम बहिराकंदा की प्रतिमा के दर्शन
सेक्रेड टूथ रेलिक मंदिर के बाद मैं कैंडी के मशहूर रॉयल बोटैनिकल गार्डन गया जहाँ से वापस आते हुए मुझे शाम के पांच बज गए। दिन अभी भी निकला हुआ था और मेरे पास अभी समय था। कैंडी में ऊपर पहाड़ी पे मशहूर एक भगवान बुद्ध का मंदिर है जिसमें बहुत ऊंची प्रतिमा बनी हुई है। कैंडी मेन बस स्टैंड से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर यह मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है।
मैं ऊपर टैक्सी करके गया और वापस पैदल आने का प्लान किया। और जगहों की तरह विदेशियों को इस मंदिर में एंट्री के LKR 250 की टिकट कटानी पड़ती है। मैं टिकट लेकर मंदिर में गया। पूरा मंदिर भगवान बुद्ध की प्रतिमा के अंदर बना हुआ है। प्रतिमा के पीछे से उसके कंधे तक जाने का रास्ता है जो की चार फ्लोर्स में बटा हुआ है। पहले फ्लोर पर मूर्ति के अंदर एक बहुत सुन्दर मंदिर बना हुआ है।
ऊपर मंदिर से कैंडी शहर का अदभुत नज़ारा देखने को मिलता है। कैंडी झील तो ऐसे लगती है जैसे घर के किसी बर्तन में पानी भरा हो और वो चमक रहा हो। शहर के चारों तरफ की पहाड़ियाँ उस नज़ारे को चार चाँद लगा देतीं हैं। भगवान बुद्ध के मंदिर के पास वहीं पर छोटा सा एक देवी का मंदिर भी है।
मैंने उस शांतिपूर्ण माहौल में करीब एक घंटा बिताया और बहुत सारी तस्वीरें भी ली। वापस आते वक़्त मेरी वहां के टिकट देने एग्जीक्यूटिव से दोस्ती हो गयी जिसने मुझे बौद्ध धर्म के बारे में और उसके इतिहास के बारे में काफी कुछ बताया। उसने मुझे यह भी बताया की बौद्ध धर्म भारत से श्रीलंका में कैसे आया। उसने मुझे अपना सपना बताया की वो लोकल गाइड बनना चाहता है और जिसके लिए वो अलग अलग भाषाएँ सीख रहा है जैसे की - फ्रेंच, स्पेनिश आदि। मेरी सुजीत से करीब आधा घंटा बात हुई।
अँधेरा हो चला था और फिर मैंने वापस आना शुरू किया। थोड़ी दूरी तक चलने पर ही बहुत तेज बारिश शुरू हो गयी और में रास्ते में ही फस गया। आज में अपना छाता लाना भूल गया था। आधे घंटे तक लगातार तेज बारिश होने पर भी मुझे उसके धीमी होने के कोई आसार नज़र नहीं आये और टैक्सी बुलानी पड़ी। टैक्सी वाला बहुत ही भला आदमी था जो इतनी तेज बारिश में भी मुझे पहाड़ की चोटी तक लेने आया। टैक्सी वाले ने मुझे मेरे होटल छोड़ दिया। धन्यवाद के तौर पे मैंने उसे किराये से थोड़े ज्यादा रूपये दिए।
कैंडी के बाद उसी रात मैं नुवारा एलिया नाम के हिल स्टेशन पर चला गया जहाँ पहुँचने में मुझे चार घंटे लगे। रात में वही रुकने के बाद मैं सुबह वापस अपने सफर पर निकला।
नुवारा एलिया में सीता माता मंदिर
नुवारा पहुँच कर अगले दिन सुबह नाश्ते के वक़्त मुझे वहां के एक लोकल व्यक्ति ने सीता माता के मंदिर के बारे में बताया और यह भी बताया की वहां कैसे जा सकते हैं। मंदिर शहर से पांच किलोमीटर की दूरी पर था। मैंने उस ओर जाती हुई एक लोकल बस पकड़ी और मंदिर पहुंच गया। इस गाँव का नाम सीता एलिया है।
मंदिर रास्ते के किनारे बना हुआ है और पीछे से एक छोटा सा झरना बहता है। सुबह सुबह की शांति और नवरात्री के चौथे दिन में मुझे वहां सीता माता के मंदिर जाने का अवसर मिला, इससे अच्छा मेरे लिए और क्या हो सकता था। कहा जाता है की यहाँ पर रावण ने माता सीता को बंदी बना कर रखा था और माता सीता यहाँ पर रोज़ भगवान राम की पूजा करतीं थीं।
मंदिर बहुत ही खूबसूरत और रंगबिरंगा था। मंदिर के बाहर हनुमान जी और रक्षकों की प्रतिमाएं थीं जोकि मंदिर की रक्षा कर रही थीं। मंदिर के अंदर माता सीता का एक छोटा सा अलग कमरा था और एक जगह राम परिवार था। मैंने वहां पर पूजा भी की।
मंदिर के आसपास बहुत सारे बन्दर घूम रहे थे जो की प्रसाद में दिए जाने वाले केले को छीनने के लिए बैठे थे पर किसी को नुक्सान नहीं पहुँचा रहे थे। मैंने मंदिर के पास करीब आधा घंटा बिताया और अगली बस पकड़कर वापस आ गया।
मैं श्रीलंका में और भी कई सारे स्थानों पर गया जैसे कि बोटैनिकल गार्डन्स, व्यू पॉइंट्स और लोकल साइट्स। इन सब के बारे में मैं अपने आगे आने वाले ब्लॉग्स में लिखूंगा।
मुझे कमैंट्स में बताएं कि आपको मेरा यह ब्लॉग कैसा लगा और अपने श्रीलंका के अनुभव के बारे में लिखें।
पढ़ने के लिए धन्यवाद !
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